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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

व्यंग्य: चूहे ने बिल खा लिया... - शम्भु चौधरी

अब मुंगेरीलाल ने मेरा हिसाब लेना शुरू कर दिया - ‘‘ अच्छा ये बताओ ये अन्ना का आंदोलन तुमने क्यों किया था? मुझे रोज उसपर लिखने को क्यों कहता था? भाई! वो तो दो साल पुरानी बात हो गई, इसबार तो हमने कोई आंदोलन-वांदोलन नहीं किया? यह अन्ना कहां से बीच में आगया आज?
मॉर्निंग वॉकर क्लब के हमारे पत्रकार मित्र मुंगेरीलाल ने पता नहीं क्या लिख दिया कि सुबह-सुबह पांच बजे ही मुझे उठाने चले आये। ठंड से सिकुड़ता हुआ रजाई के भीतर से ही उनकी आवाज सुनी...‘‘अरे ओउउउ..सीताराम जी... जल्दी बहार आओ घूमने जाना नहीं क्या?

 मुझे अनायास ही ‘अरे’ कि जगह पता नहीं सिर्फ ‘‘ओअअअ म्हारा सीताराम जी’’ सुनाई देने लगा। मैंने उनको समझाते हुए कहा कि यार सुबह-सुबह तो शुभ-शुभ बोला कर यार....
दूसरी बार उन्होंने फिर जोर से आवाज लगाई.... मैं हड़बड़ी में गरम-गरम रजाई का मोह त्याग कर खिड़की से बहार देखा- चारों तरफ  कुप अंधेरा ही अंधेरा, कुहासा छाया हुआ था मध्यरात्रि सा सन्नाटा चारों तरफ बिखरा हुआ था। स्ट्रीट लाईटें चमक रही थी। कोलकाता में दिसम्बर माह में भी ठंड कम ही रहती है परन्तु हमारा ईलाका शहर से थोड़ा दूर रहने के चलते यहाँ गांव जैसा आनन्द मिलता है।

अपनी आंखें मसलते हुए- बोला यार आता हूँ...आता हूँ....उम्र की इस दहलीज पर भी आकर तुम नहीं सुधरने वाले। सुबह-सुबह क्यों बकवास किये जा रहे हो।

मुंगेरीलाल कहां मेरी बात सुनता वह चिल्लाये ही जा रहा था जल्दी बहार आता है कि आज इस कलम की समाधी तेरे घर के बाहर ही कर दूंगा। मुझे समझ में आ गया जरूर कोई बड़ी घटना रात को हो गई होगी। जल्दी से गुसलखाने में गया, कपड़े बदले सोचता हुआ रात 11 बजे तक के समाचार में तो कोई बड़ी खबर नहीं थी सिवा लोकपाल के और केजरीवाल के। पर केजरीवाल पर तो हमने कल ही बात की थी और रही लोकपाल के यह तो दो साल पुरानी बात है। अन्ना का आंदोलन में भी इस बार कोई खास बात नहीं थी जैसा कि पिछले बार देखने को मिला था। फिर इनको यह क्या सूझी कि तड़के सुबह-सुबह ही हंगामा मचाने लगे।

वैसे तो मॉर्निंग वॉक में जबतक मुंगेरीलाल जी कोई नया धमाका नहीं करते हमें मजा ही नहीं आता। हम सबने मिलकर इनका नाम ही ‘‘मीडिया समाचार’’ रख दिया है।

 घर के बाहर आकर दरवाजा भीतर से बंद किया, चाबी खिड़की के भीतर डालते हुए अंदर आवाज दी... अजी सुनती हो.... ‘‘चाबी भीतर डाल दी है!’’  अंदरे से एक चुभती हुई आवाज निकली- ‘‘ मेरे सर पर मार देते?’’ काम-धाम तो कुछ करना नहीं बस दूसरों को परेशान करना। 

मैंने वह आवाज सुनी-अनसुनी करते हुए मुंगेरीलाल की तरफ रुख किया बोलो तुम्हें क्या हो गया इतनी सुबह?
मुंगेरीलाल और ताव खा गया बोला- ‘‘चल बेटा आज तो तेरी भीतर भी धुलाई होनी है और बहार भी’’
मैंने उसकी तरफ शक की नजर से देखा.. प्रश्नवाचक चिन्ह की मुद्रा में उसको निहारा- ‘‘मैं...मैं...ने??
अच्छा..अ..अ..आ अब मिमियाने भी लगा तुमको सब पता है। तुम्ही हो वो....अभी थोड़ी देर में ही तुमको सब पता चल जायेगा।

मैंने ऊपर की ओर देखा अभी भी सूरज की लालीमा पूरब में नहीं दिखाई दे रही थी.. सेन्ट्रल पार्क का मैनगेट भी अभी तक नहीं खुला होगा। मुंगेरीलाल की तरफ देखते हुए भाई सुबह-सुबह मेरे से क्या गलती हो गई कि तुम इतने गुस्से में दिखाई दे रहे हो?

मुंगेरीलाल कुछ बोलता तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.....जयश्री राम.....!! राधे....राधे....!!
हमदोंनो ने पीछे मुड़कर देखा रामप्रसाद जी मफ्लर, चादार ओढ़े चले आ रहें हैं... मैंने मौका देखते ही बात पलटने की चेष्टा की ‘‘क्यों रामप्रसादजी इतनी भी ठंड नहीं है कि आपको इतना ठंडा लग गया’’
रामप्रसादजी भी कहाँ मौका खोनेवाले थे मुझपर पलटवार करते हुए कहा- बस अब सूरज की किरण आकाश में चढ़ने दो सबको गर्मी आ जायेगी। राधे...राधे...

अब मुंगेरीलाल ने मेरा हिसाब लेना शुरू कर दिया - ‘‘ अच्छा ये बताओ ये अन्ना का आंदोलन तुमने क्यों किया था? मुझे रोज उसपर लिखने को क्यों कहता था?

भाई! वो तो दो साल पुरानी बात हो गई, इसबार तो हमने कोई आंदोलन-वांदोलन नहीं किया? यह अन्ना कहां से बीच में आगया आज?

खुद ही देख लो मैंने कहा था अन्ना से सावधान रहना!!! अब लो लोकपाल!! पूरा का पूरा लोकपाल बिल में चला गया.... अन्ना का अनशन..अन्ना का अनशन, सब दिखावा था। शेर को पीछे करने और चूहे को सामने लाने का। मजा लो अब! चूहे ने बिल खा लिया...।

मैं शर्मिंदा था। आज मुंगेरीलाल ने वह बात कह दी जो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मुझे पहली बार लगा कि मुंगेरीलाल को गुस्सा करने का हक बनता है। सुरज निकल चुका था.. लोगों का आना शुरु हो चुका था।
व्यायाम करते-करते मुझे अपनी धर्मपत्नी की भी याद आ गई। उन दिनों किस प्रकार मुझपर अन्ना का भूत सवार था। मैं उसकी एक बात सुनने को तैयार नहीं था। आज मुंगेरीलाल की बात सुनकर मुझे भीतर ही भीतर इतनी आत्मग्लानी हो रही थी कि कुछ बोले भी नहीं बन रहा था।

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