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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

जनता सड़कों पर क्यों?




फेसबुक पर दुनिया भर के युवक इस तरह के प्रश्न पूछते नजर आ रहें हैं कि क्या वैगेर किसी रक्त-पात के किसी आन्दोलन को आम जनता तक पंहुचाया जा सकता है? या फिर सरकार झूक जाएगी? जो खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट व्यवस्था की शिकार है?, या फिर यह भी पूछा जा रहा है कि विपक्ष इस मामले में दोहरा मापदण्ड क्यों अपना रही है? साथ ही राजनेताओं से जुड़े कई सवाल जो फेसबुक के माध्यम से जानने की चेष्टा कर रहे हैं।
इन सबके बीच ये लोग यह भी जानकारी करना चाह रहें हैं कि इस आंदोलन को किस तबके का समर्थन मिल रहा है। राजनैतिक पार्टीयों की भूमिका पर भी प्रश्न पूछे जा रहें हैं। यह भी प्रश्न किया जा रहा है कि सिर्फ हाथों में तिरंगा झण्डा और गांधी टोपी लगा कर आंदोलन करने से सरकार आपलोगों की बात मान जाऐगी?


जनता सड़कों पर क्यों?

अब होगा कि कल होगा,
लोकतंत्र का है देश ये यारो!
जब मन होगा क्या तब होगा।
क्या भ्रष्टाचार कम होगा?
होगा-होगा कल होगा।
क्या देश लूटना बंद होगा?
होगा-होगा कल होगा। (स्वरचित)


आज श्री अन्नाजी के अनशन का आठवां दिन होने जा रहा है उनकी सेहत में भी तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। भारतीय लोकतंत्र को दुनिया भर में आश्चर्य की निगाहों से देखा जा रहा है। भारत सहित विश्वभर में प्रदर्शन होने लगे। जन सैलाब उमड़ता जा रहा है। कल आघी रात के समय भी दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों की संख्या में समर्थक हाथों में फूल लिए ईश्वर से प्रार्थना करते देखे गये। देश भर में प्रर्दशन हो रहे हैं। सांसदों के घरों के बहार भी आंदोलनकारी जूटने लगे। अबतक देश के विभिन्न हिस्सों से 100 से भी अधिक सांसदों के घर के बहार विरोध प्रर्दशन किया जा चुका है।


कोलकात स्थित जिस जगह मेरा निवास है यहाँ भी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति के पास (सेन्ट्रल पार्क) पिछले पांच दिनों से नियमित रूप से रोजाना रात्रि 8 बजे सैकड़ों युवक एकत्रित हो मशाल जुलूस निकाल रहे हैं। गांधी टोपी पर लिखा होता है- ‘‘मैं अन्ना हूँ’’ कोलकाता शहर में चारों तरफ छोटी-छोटी टूकरियों में शांतिपूर्ण आन्दोलन-प्रर्दशन करते लोगों को देखा जा सकता है। शहर के आस-पास के ईलाकों में, जैसे रिसड़ा-हिन्दमोटर, बारासात, दमदम, हवड़ा आदि सभी जगहों पर जन लोकपाल व श्री अन्ना के समर्थन में नारे लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही यहाँ इस बात का भी जिक्र जरूरी है कि कोलकाता से प्रकाशित एक-दो समाचार पत्रों को अब कुछ कहने को नहीं मिला तो उसने विशाल जन समुह में होने वाली छोटी-मोटी हरकतों को ही छापना शुरू कर दिया ताकी यहाँ एक खास वर्ग को खुश रखा जा सके। वैसे भी अभी तक सरकारी कर्मचारी और राजनैतिक दलों का परोक्ष रूप से इस आंदोलन को समर्थन न के बराबर ही है। इसलिए इस आंदोलन को विशुद्ध सामाजिक आंदोलन कहा जाना मुझे ज्यादा उपयुक्त लगता है।


भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने की इस जन आन्दोलन में उमड़ता जन-सैलाब न सिर्फ लोकतंत्र को मजबूत कर रहा है दुनिया भर में इस आंदोलन पर बहस भी छिड़ चुकी है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में हिस्सा ले रहे जन सैलाब पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही है। भारत के भ्रष्टाचार जन आंदोलन से आज दुनिया भर की युवा पीढ़ी प्रभावित दिखती है।


विश्व के कई देश भी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में जकड़ चुके हैं। फेसबुक पर दुनिया भर के युवक इस तरह के प्रश्न पूछते नजर आ रहें हैं कि क्या वैगेर किसी रक्त-पात के किसी आन्दोलन को आम जनता तक पंहुचाया जा सकता है? या फिर सरकार झूक जाएगी? जो खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट व्यवस्था की शिकार है?, या फिर यह भी पूछा जा रहा है कि विपक्ष इस मामले में दोहरा मापदण्ड क्यों अपना रही है? साथ ही राजनेताओं से जुड़े कई सवाल जो फेसबुक के माध्यम से जानने की चेष्टा कर रहे हैं।


इन सबके बीच ये लोग यह भी जानकारी करना चाह रहें हैं कि इस आंदोलन को किस तबके का समर्थन मिल रहा है। राजनैतिक पार्टीयों की भूमिका पर भी प्रश्न पूछे जा रहें हैं। यह भी प्रश्न किया जा रहा है कि सिर्फ हाथों में तिरंगा झण्डा और गांधी टोपी लगा कर आंदोलन करने से सरकार आपलोगों की बात मान जाऐगी? जिसने एक लम्बी चर्चा के बावजूद विवादित बिल ही सदन के पटल पर प्रस्तुत कर संसद की स्थाई समिति को भेज दी हो ऐसी सरकार से आपलोग किस तरह की अपेक्षा रखते हैं। भारत सरकार की मंशा पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े किए जा रहे हैं कि इस बात की क्या गारंटी है कि स्थाई समिति पुनः समय लेकर इस आंदोलन को शांत कर दे, जैसा सरकार ने पहले भी किया था ज्वांईड ड्राफ्टींग कमेटी बना कर। जिसका परिणाम सिर्फ उनकी भ्रष्ट मानसिकता ही निकली सरकारी लोकपाल बिल के रूप में।


साथ ही यह भी जानकार ली जा रही है कि जिस संसद में भ्रष्ट लोगों का ही बहुमत है और विपक्ष भी जन लोकपाल पर पूरी तरह सहमत नहीं तो यह कैसे संभव हो पायेगा कि यही संसद जन लोकपाल को संसद में स्वीकार कर पारित कर देवें? साथ ही यह शंका भी जाहिर की जा रही है कि सरकार और विपक्ष दोनों ही मजबूत व प्रभावी लोकपाल की बात कर रही है। तब फिर देश की जनता सड़कों पर क्यों उतर गई?

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