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मंगलवार, 19 जुलाई 2011

देश के बेईमान अर्थशास्त्री - शम्भु चौधरी



जिनको जेलों में बन्द किया जाना चाहिए था उनके साथ सरकार ने मिलकर बैंकों का पाप धो डाला। अब इस लूट के बाद ‘सेबी’ के माध्यम से इन कम्पनियों को नई लूट की छूट दे दी गई है। वो है 10 रुपये के शेयरों के फेस भ्येल्यु को कम कर या तो एक रुपया या दो रुपया करना या कम्पनी की कुल शेयर पुंजी को कम कर नये शेयरों का निर्गम करना। अब आपको यह बात कैसे समझ में आयेगी? सीधी-सीधी भाषा में बता देता हूँ माल का चवन्नी करना और डकार भी न लेना। आपने वो बिल्लियों की रोटी और चालाक बन्दर वाली कहानी तो पढ़ी ही होगी। बस कुल मिला कर देश के बेईमान अर्थशास्त्री यही कार्य करने की योजना को मुर्तरूप प्रदान कर रहें हैं। लेख जारी....


भारत एक कृषि प्रधान देश है। जहाँ देश की 70 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि आधारित जीवन यापन करती है। कच्ची सड़कों का सफर इतना लम्बा है कि उसे नापते-नापते बच्चों के पांव थक जाते हैं। 50 हजार गांवों में आजादी के 65 सालों बाद भी सड़क-पानी-बिजली-शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव साफ झलकता है। रोजाना पांच-पांच किलोमीटर का सफर तय कर, रास्ते में नदी-नाले को तैर-पार कर गांवों के बच्चे अभी भी स्कूल जाते देखे जा सकते हैं। रोजगार देने के नाम पर फल-फूल रहे उद्योगों के मालीक उद्योगपति बन गये और खेतों में सोना पैदा करने वाले किसान रोजाना फांसी के फंदे पर लटकने लगे। देश के जाने-माने अर्थशास्त्रियों को वतानकुलित पुस्तकों से मानद उपाधी दी जाने लगी। उनके दिमाग का खोखलापन रातों-रात खरबों की हेरा-फेरी सरकारी बैंकों के माध्यमों से कर दिया जाता है कि किसी को सपने में भी इसका अभास नहीं हो सकता। जो जिनता बड़ा अर्थशास्त्री वो उतना ही बड़ा आर्थिक अपराधी। पिछले दिनों देश के बैंकों के माध्यम से खरबों का बारा-नारा किया गया। ब्याज दर को 14-15 प्रतिशत से घटा कर 6-7 प्रतिशत की दर पे ले जाया गया, साथ ही उद्योगपतियों को बैंक लूटने की इजाजत भी दे दी गई। बैंकों के करोड़ों के पुराने कर्जों को बैगर ब्याज सिर्फ मूल को चुकता कर नया कर्ज नई दरों पर बांटा गया। अर्थात एक नई बैंक के द्वारा बेईमानों के पुराने कर्ज के अवज में नया कर्ज नये ब्याज दर पर मुहैया कराया गया और पुराने बैंकों के कर्ज को बिना ब्याज के उनका ऋण चुकता कर दिया गया। इस तरह की धोखाघड़ी को नाम ‘पुर्नजीवन’ दिया गया। अर्थात ‘‘नान परफोर्रमेन्स ऐसेस्ट’’ जिसका हिन्दी रूपान्तर होता है जो धन कार्यरहित हो चुका हो उसे सक्रिय धन में परिवर्तित करना इसके माध्यम से देश के लाखों लुटरों को पुनः धन लूटने की खुली छूट दे दी गई जबकि किसी आम किसान के साथ ऐसा करने के लिए सरकार हजार बार सोचने में वक्त गुजार देती है। ‘पुर्नजीवन’ के इस धोखाघड़ी में तमाम सरकारी बैंके शामिल हुए। एक ने दूसरे बैंक के एन.पी.ए. को समाप्त किया तो दूसरे ने तीसरे इस प्रकार न सिर्फ धन की हेरा-फेरी कर सारे एन.पी.ए को समाप्त कर दिया गया बल्की इस लूट में उद्योगपतियों को भी सहयोगी बना लिया गया कारण साफ था देश के बैंकों का 90 प्रतिशत इन्हीं लुटेरों के यहाँ दबा पड़ा था, जिसका न तो वे ब्याज भूगतान कर रह थे ना ही कम्पनी को ठीक ढंग से चला रहे थे। जनता की गाढ़ी मेहनत की कमायें धन से वे एशो-आराम की सारी सुविधाऐं खरीद कर न सिर्फ मौज मस्ती करते रहे, जनता के धन का भी दुरुपयोग करते पायें जातें रहे हैं। जिनको जेलों में बन्द किया जाना चाहिए था उनके साथ सरकार ने मिलकर बैंकों का पाप धो डाला। अब इस लूट के बाद ‘सेबी’ के माध्यम से इन कम्पनियों को नई लूट की छूट दे दी गई है। वो है 10 रुपये के शेयरों के फेस भ्येल्यु को कम कर या तो एक रुपया या दो रुपया करना या कम्पनी की कुल शेयर पुंजी को कम कर नये शेयरों का निर्गम करना। अब आपको यह बात कैसे समझ में आयेगी? सीधी-सीधी भाषा में बता देता हूँ माल का चवन्नी करना और डकार भी न लेना। आपने वो बिल्लियों की रोटी और चालाक बन्दर वाली कहानी तो पढ़ी ही होगी। बस कुल मिला कर देश के बेईमान अर्थशास्त्री यही कार्य करने की योजना को मुर्तरूप प्रदान कर रहें हैं। लेख जारी.... (लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है।)

1 विचार मंच:

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दिवस ने कहा…

आदरणीय शंभू चौधरी जी यह सब जानकर तो बहुत दुःख हुआ| सरकार की लूटनीति तो हम जानते ही हैं, किन्तु मंत्री परिषद् में बैठे बड़े बड़े अर्थ शास्त्री इस प्रकार अपने अर्थ शास्त्र के ज्ञान का दुरुपयोग करेंगे, यह तो सच में निंदनीय है|

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बहुत बहतु धन्यवाद...

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