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गुरुवार, 14 जुलाई 2011

आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी? - शम्भु चौधरी



अब आप ही सोचिये स्वयं प्रधानमंत्री जी (चोरों के सरदार) ने ही खुद स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार उनकी गठबंधन धर्म की मजबूरी है और वे पार्टी के वफादार नौकर से ज्यादा कुछ नहीं हैं तो आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी? प्रधानमंत्री पद व सोनिया से कहीं अच्छा होगा कि आप पत्नी के साथ रोजाना गुरुद्वारे में जाकर अपने पापों का पश्चाताप करें। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’


बाबा अम्बेदकर द्वारा रचित संविधान में राम का नाम लिखना-जपना सांप्रदायिकता है सो हमने इस लय को नई धुन देने का प्रयास कर रहा हूँ। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’ आज देश में हर राजनेताओं की भाषा में अल्पसंख्यकवाद सांप्रदायिकता की बू झलकती है। जिसे देखो हर मामले को सांप्रदायिकता से जोड़ रहा है। कालेधन की बात हो या राष्ट्र में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार जरा सी कोई चूँ-चपड़ किया की बस उसे सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने और चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश का हिस्सा मानने लगते हैं। इनकी भाषा में अल्पसंख्यकवाद सांप्रदायिकता की बात साफ झलकती है। मानो धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ही सिर्फ 35 करोड़ अल्पसंख्यकों को बली चढ़ा दी गई हो। इस कतार में सबके सब लगे हुऐं हैं, धक्कमपेल चल रहा है। 65 सालों से उल्लू बनते आ रहे मुसलमानों के विकास, शिक्षा, कुरीतियों, रूढ़ीवादी परम्पराओं, कट्टरवादी धार्मिकता पर बोलने और उन्हें सुधारने का काम किसी ने नहीं किया। सिर्फ उन्हें हिन्दू कट्टरपंथियों से बचाये रखने व उनकी असामाजिक व कट्टरवादी धार्मिक गतिविधियों का संरक्षण कर वोट बैंक को सुरक्षित करना हमारे देश के राजनेताओं का एक मात्र लक्ष्य रह गया है। इसके लिए मुसलमानों के धार्मिक कट्टरवादी भी विशेष रूप से जिम्मेदार हैं, जो समाज के विकास को रोक राजनेताओं के पक्ष में अपने बयान देते नजर आते हैं। जब इमाम किसी दल विशेष को वोट देने या न देने की अपील जारी करता है तो वह धर्मनिरपेक्ष है। परन्तु जब बाबा रामदेव देश के लुटे हुए धन की बात करता हो या अन्ना हजारे देश की संसद को भ्रष्टमुक्त करने के कानून पर चर्चा करता हो तो या तो इन लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वे जनता के प्रतिनिधि नहीं है पहले वे चुनकर आयें तब चुने हुए बेईमानों से बात करें या फिर उन्हें सांप्रदायिक शक्ति करार दे दिया जाता है। मानो इस देश में आतंकवादी हमला करने वाली ताकतें तो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में बचती रहे और राष्ट्र के उन्नति व इसके उत्थान की बात करने वाला या तो देश का गद्दार है या देश में सांप्रदायिकता का जहर फैला रहा हो। मजे की बात यह है कि इससे न तो कभी किसी इमाम का भला हुआ न ही इनकी कौम को हाँ! कभी कभार वह भी चुनाव के वक्त उनके प्रसाद के बतौर थोड़ा बतासा खाने को जरूर मिल जाता है। जैसे कुछ असमाजिक तत्वों की रिहाई या किसी कानून को उनके पक्ष में समाप्त कर देना या बना देना या फिर बंग्लादेशियों को राशनकार्ड व वोटर कार्ड देकर उसे खुद की झौली में जमा कर लेना। इससे इस देश के मुसलमानों का क्या भला हुआ? मुसलमानों के वोट बढ़ने से यदि सत्ता उनको मिलती हो तो बात मेरी समझ में आती पर किसी कांग्रसी ने कभी भी सत्ता मुसलमानों को सोपने की बात कभी नहीं की व सत्ता किसे सोपना चाहतें हैं राहुल गांधी को.... सोनिया जी को या खुद उनसे चिपके रह कर देश को लुटने के फिराक में रहते हैं। अब आप ही सोचिये स्वयं प्रधानमंत्री जी (चोरों के सरदार) ने ही खुद स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार उनकी गठबंधन धर्म की मजबूरी है और वे पार्टी के वफादार नौकर से ज्यादा कुछ नहीं हैं तो आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी?प्रधानमंत्री पद व सोनिया से कहीं अच्छा होगा कि आप पत्नी के साथ रोजाना गुरुद्वारे में जाकर अपने पापों का पश्चाताप करें। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’ (लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

7 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

बेनामी ने कहा…

शम्भू जी,
मेरे ख्याल में प्रधानमंत्री के धर्म के आधार पर उन पर टिप्पणी करना और उनके ज़रिये किसी एक धर्म विशेष को भ्रष्ट कह देना शोभनीये नहीं होगा, आपने पूरे लेख में जो बातें कहीं हैं में उनसे पूरी तरह से सहमत हूँ, लेकिन धार्मिक आधार पर किसी का किरदार तय करना सही नहीं ठहराया जा सकता. आपने जैसे सरदारों के ज़मीर वाले होने और प्रधानमंत्री के बेज़मीर होने की तुलना करते हुए कहा है 'कि कहाँ गई सरदारों की ज़मीर' उस से यूँ लग रहा है कि एक सरदार प्रधानमंत्री के भ्रष्ट होने कि वजह से सम्पूर्ण सिख समुदाय ही भ्रष्ट हो गया है. ऐसा कह कर आप ने जाने-अनजाने में आम सिख मानस को ठेस पहुंचा दी है. फिर उन लोगो (नेतायों) और आप में क्या फर्क रहा जो धार्मिक तुशटीकरण के ज़रिये वोट बटोरते हैं और जिन पर आपने भी कटाक्ष किया है. मेरे ख्याल में कलम बहुत खतरनाक चीज़ होती है अगर उसे संयम से प्रयोग किया जाये तो सामने वाले को हिला के रख सकती है, वरना आप पर ही वार कर देती है. लिखने वाले के लफ्ज़ अक्सर उसके ज़ेहन का आईना बन जाते हैं, जिन से उसकी सोच ज़ाहिर हो जाती है. अब ये लिखने वाले पर निर्भर करता है कि वोह अपनी क्या इमेज बनाना चाहता है.
kamal kumar

दिवस ने कहा…

आदरणीय शम्भू चौधरी जी, आपके आलेख की एक एक पंक्ति से पूर्णत: सहमती|
दरअसल यह सरदार, सरदार कहलाने के योग्य ही नहीं है| इसे तो पंजाब जाकर हेयर कटिंग का सलून खोल लेना चाहिए|
धर्मनिरपेक्षता पर आपने अच्छे बाण चलाए हैं|
इसे तो तुष्टिकरण अथवा शर्मनिरपेक्षता की संज्ञा दी जानी चाहिए|

एक बात आपसे और पूछना चाहता हूँ| हिंदी में लिखने के लिए आपने यह सुविधा कैसे प्राप्त की? आपकी पोस्ट के नीचे एक बॉक्स बना है, जिस पर लिखा है "हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा"
कृपया बताएं, यह कैसे किया जाए| मैं भी अपने ब्लॉग पर इसे लगाना चाहता हूँ|
कृपया मार्गदर्शन करें|

Shambhu Choudhary ने कहा…

अदरणीय कमल जी,
आपके विचारों से सहमत हूँ परन्तु कई बार तलवार के वार से खुद को बचाने के चक्कर में लोग मैदान ही छोड़ देते हैं। सिख समुदाय के प्रति मेरी बड़ी श्रद्धा है। मनमोहन सिंह को गद्दी उनकी वफादारी के लिए नहीं कांग्रसियों ने अपने पापों को धोने के लिए दिया है ताकी सन् 1984 के सिखों की कत्लेआम का पाप एक सिख के हाथों ही धोया जा सके। शायद आपको ध्यान होगा कि अभी हाल में ही एक बयान कांग्रेस की तरफ से आया था कि ‘‘अब सिखों को सिख दंगे की बात भूला देनी चाहिये।’’ भला क्यों? प्रधानमंत्री जी से कोई पूछे कि क्या भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान है कि अपराधी को सजा मुक्त कर दिया जाए? जाने-अनजाने संभवतः मेरे लेख से किसी समूदाय विशेष अथवा सिख समूदाय को ठेस लगी हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। - लेखक

Shambhu Choudhary ने कहा…

आरणीय दिनेश जी,
यदि आपको HTML आता हो तो मैं आपको HTML CODE भेज दूंगा जिसे आप अपने HTML BOX में EDIT कर हिन्दी लिखने का यह बॉक्स बना सकते हैं।

दिवस ने कहा…

आदरणीय शंभू चौधरी जी...मुझे HTML आता है...कृपया मुझे Code भेजें... pndiwasgaur@gmail.com
धन्यवाद...

बेनामी ने कहा…

दिनेश जी

मैंने जिस भूल सुधार के लिए शम्भू जी को प्रार्थना की थी और जिसका एहसास करते हुए उन्होंने न सिर्फ वह कटु टिप्पणी हटा ली बल्कि उसके लिए क्षमा भी मांग ली. आप वही गलती दोहराने से बाज़ नहीं आये.

शायद आप जानते नहीं के सिखों के लिए बाल काटना या कटवाना बिलकुल वैसे ही जैसे हिंदुयों के लिए गाय माता का मांस खाना या मुसलमानों के लिए रोज़े ना रखना. यानि कुफ्र या धर्म विरोधी होता है. वैसे ये भी यकीन ना करने लायक बात है कि आप को ये पता नहीं है. मैंने पहले भी कहा है कि किसी के किरदार को उस के धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. किसी को भ्रष्ट या अनैतिक होने पर उसे उसकी धार्मिक मान्यता ना मानने के लिए ना तो मजबूर किया जा सकता है और ना ही ऐसी टिप्पणी नैतिक कहलवा सकती है. आप कि टिप्पणी के हिसाब से सोचूं तो कलमाड़ी, मारण व अन्य भ्रष्ट लोगों को मंदिर के बाहर बैठ कर जुटे पोलिश करने चाहिए लेकिन उन्हें अन्दर ना आने दिया जाये या ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे कि वह अपनी धार्मिक मान्यता से वंचित हो जाये. पर अफ़सोस कि ना आपने ना कभी किसी और ने ऐसी टिपण्णी कभी किसी हिन्दू, मुस्लिम या ईसाई के बारे में नहीं दी है. अक्सर ऐसा सिर्फ सिखों के प्रति या उनके धार्मिक चिन्हों के प्रति ही क्यों किया जाता है? क्या इस से सिखों के प्रति आप लोगों की हीन भावना ज़ाहिर नहीं होती? इंसान का किरदार उसकी अपनी सोच, विचारधारा पर आधारित होता है ना कि उसके धर्म पर. जैसे आप अगर ईमानदार है तो इसलिए नहीं हैं कि आप गौड़ हैं या हिन्दू हैं, बल्कि इसलिए हैं क्यों कि आप इमानदार होना चाहते हैं. फिर चाहे आप हिन्दू, मुस्लिम बोध जैन या कुछ भी हों आप ईमानदार ही रहेंगे. इतनी इमानदारी हमें हर धर्म के प्रति भी दिखानी चाहिए.

कमल कुमार

Shambhu Choudhary ने कहा…

कमल जी, क्षमा करेगें पुनः अपाके विचारों से अपने आपको सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ। वैसे जूते साफ करने से किसी का धर्म भ्रष्ट होता हो तो सबसे पहले मैं मंदिर के बहार जाकर जूते सफाई करना चाहुंगा वैसे आपको शायद पता ही होगा सिख समुदाय गुरुद्वारें में जूते साफ करना सेवा का अंग मानते हैं। रही बात किसी भी धर्म विशेष की या राजनेताओं की तो इस पर इस लेख में ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई है अतः इस विषय पर अपनी कोई टिप्पनी देना यहाँ जरूरी नहीं समझता हूँ।

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