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मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

हिन्द-युग्म ने किया अपने वार्षिकोत्सव का सफल आयोजन

हिन्दी टाइपिंग और ब्लॉग-मेकिंग पर पॉवर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण, काव्यपाठ के साथ लोगों ने गीत-संगीत का आनंद उठाया
अतिथिगणः प्रो॰ भूदेव शर्मा, राजेन्द्र यादव(मुख्य-अतिथि) और डॉ॰ सुरेश कुमार सिंह


रविवार 28 दिसम्बर 2008 को दोपहर 2 बजे से संध्या 6:30 बजे तक धर्मवीर संगोष्ठी कक्ष, हिन्दी भवन में हिन्द-युग्म का वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत निखिल आनंद गिरि के औपचारिक उद्बोधन से हुई। निखिल ने कार्यक्रम के संचालन के लिए हिन्द-युग्म के वरिष्ठ सदस्य और हरियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' से आग्रह किया। शुरूआत में अतिथियों का गुलदस्ता भेंट करके हिन्द-युग्म के सदस्यों ने स्वागत किया। स्वागत करने वालों में शिवानी सिंह, सुनीता चोटिया, नीलम मिश्रा, रूपम चोपड़ा और तपन शर्मा के नाम प्रमुख हैं। इसके बाद हिन्द-युग्म के संस्थापक शैलेश भारतवासी ने पॉवर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण की मदद से हिन्द-युग्म की अब तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। इस प्रस्तुतिकरण को वहाँ उपस्थित १५० से अधिक दर्शकों ने टकटकी लगाकर देखा। प्रस्तुतिकरण के बैकग्राउंड में हिन्द-युग्म का थीम-गीत बढ़े चलो का बजना इसमें चार चाँद लगा रहा था। पॉवर प्वाइंट में देश-विदेश से हिन्द-युग्म को मिले शुभकामना और बधाई संदेश भी दिखाये गये।
संचालकः डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम'

कार्यक्रम में इस बात का ख्याल रखा गया था कि विविधता रहे ताकि दर्शक कम से कम बोर हों। इसके बाद काव्य-पाठ का सिलसिला आरम्भ हुआ। हिन्द-युग्म के मेंटर और दिल्ली पोएट्री संस्था के संस्थापक अमित दहिया बादशाह ने पहले कवि के तौर पर काव्य-पाठ का शुभारम्भ किया। 'मिट्टी' और 'चिड़िया' कविता ने लोगों का दिल जीत लिया।
फिर यूनिकवि पावस नीर ने अपनी वह कविता सुनाई जिस कविता ने उन्हें यूनिकवि का खिताब दिया था। शोभा महेन्द्रू ने २६ नवम्बर २००८ को मुम्बई में हुई आंतक घटना की निंदा अपने एक गीत के माध्यम से की और राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया।
इसके बाद मंच पर आसीन पहले अतिथि प्रदीप शर्मा जो मीडिया से ३०-३२ वर्षों से जुड़े हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्पोर्ट्स कमेंटेटर हैं और वर्तमान में DU-FM के प्रोग्रेम ऑफिसर हैं, को दो शब्द कहने के लिए बुलाया गया। जिसमें उन्होंने हिन्द-युग्म और वहाँ उपस्थित सभी दर्शकों को यह सलाह दी कि हिन्दी या उर्दू या कोई भी भाषा के शब्दों का सही इस्तेमाल और सही उच्चारण होना चाहिए। यह भी कहा कि हिन्द-युग्म के इस प्रयास में मुझसे जितना और जिस प्रकार से बन पड़ेगा, मैं मदद करूँगा।
दूसरा संभाषण डॉ॰ सुरेश कुमार सिंह (सदस्य कपार्ट, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, डायरेक्टर-एडमिनिस्ट्रेशनः BBS मैनेजमेंट और फॉर्मेसी संस्थान, ग्रेटर नोएडा, उ॰प्र॰) का हुआ। उन्होंने यह बताया कि हिन्द-युग्म को वो दिल्ली में रहकर नहीं बल्कि मुम्बई में जाकर जान सके। यह भी कहा कि उनका ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली ऐसी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटीकरण के पक्षधर हैं। हिन्द-युग्म ऐसे गैरसरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर काम करे तो वे आर्थिक सहयोग देने की पहल कर सकते हैं।
तत्पश्चात हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने 'हिन्दी टाइपिंग और ब्लॉग-मेकिंग' पर पॉवर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण दिया और यह बताया कि कोई भी अधिकतम १० मिनट में हिन्दी टाइपिंग सीख सकता है और ब्लॉग बना सकता है। इन्होंने अपना डेढ़-वर्षीय यूनिप्रशिक्षण का अनुभव बाँटा। बहुत से पाठकों ने सवाल किया, लेकिन समय की कमी के कारण उनका समाधान ईमेल या फोन द्वारा करने की बात कहकर कार्यक्रम के अगले आकर्षण की ओर बढ़ने की सलाह संचालक ने दी। वार्षिकोत्सव के आयोजन का यह सबसे बड़ा आकर्षण था। १५० से भी अधिक संख्या में उपस्थित दर्शकों की भीड़ इस बात का प्रमाण थी कि लोग ब्लॉगिंग सीखना चाहते हैं और अपनी भाषा में लिखना-पढ़ना चाहते हैं।
इसके बाद हिन्द-युग्म पाठक सम्मान २००८ से ४ पाठकों को सम्मानित करने का क्रम आया। जिसमें आलोक सिंह 'साहिल', सुमित भारद्वाज, दीपाली मिश्रा और पूजा अनिल को यह सम्मान दिया जाना था। यह पुरस्कार प्रयास ट्रस्ट, रोहतक द्वारा दिया गया, जिसके तहत स्मृति चिह्न, पुस्तकों का बंडल और पुस्तकों का बंडल भेंट किये गये। दीपाली मिश्रा की ओर से यह सम्मान इनके चाचा विजय प्रकाश मिश्रा और पूजा अनिल की ओर से यह सम्मान हिन्द-युग्म की सदस्या नीलम मिश्रा ने ग्रहण किया।
प्रो॰ भूदेव शर्मा और राजेन्द्र यादव

इसके बाद हिन्द-युग्म के बहुचर्चित युवाकवि गौरव सोलंकी का काव्यपाठ हुआ। जो बहुत पसंद किया गया। इन्होंने 'हेमंत करकरे नाम का आदमी मर गया था' 'तुम्हारा प्रायश्चित' आदि कविताओं का पाठ किया। तालियों की गड़गड़ाहटें कवितापाठ के प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत कर रही थीं।
कार्यक्रम में आगे अपने संभाषण में हिन्द-युग्म के अगले अतिथि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गणितज्ञ प्रो॰ भूदेव शर्मा ने कहा कि उन्होंने शुरू से ही इंटरनेट को बहुत महत्व दिया है। अमेरिका में रहने वाला हर अप्रवासी भारतीय इंटरनेट से जुड़ा है और इंटरनेट पर हिन्दी में ही पढ़ना-लिखना चाहता है। इसमें बहुत संभावनाएँ हैं। प्रो॰ भूदेव शर्मा 90 के दशक में अमेरिका और उसके आस-पास हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार करने में अग्रणी रहे हैं।
आगे के काव्यपाठ में रूपम चोपड़ा ने 'मौसम बदल रहा है' और 'आज फिर वही बात है' का पाठ किया। जिसके बाद संचालक श्याम ने सखा श्याम ने यह कहा कि आज के युवा कवि नये मुहावरे गढ़ रहे हैं। मनुज मेहता ने अपने प्रभावी आवाज़ में 'मेरा कमरा' इत्यादि कविताओं का पाठकर समा बाँध दिया।
इसके बाद नं आया अपनी प्रभावी आवाज़ के लिए मशहूर यूनिकवि निखिल आनंद गिरि का, जिन्होंने १० मिनिट तक श्रोताओं को बाँधे रखा। अंतिम कवि के रूप हिन्द-युग्म के तीसरे अतिथि कवि और वर्तमान में हिन्द-युग्म पर बेहद सक्रिय नाज़िम नक़वी को बुलाया गया जिन्होंने अपनी ग़ज़ल अदायगी से लोगों का दिल जीत लिया।
इसके बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और देश के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र यादव की बारी आई।
राजेन्द्र यादव ने कहा कि चूँकि इंटरनेट की दुनिया इतनी विस्तृत हो गई है, कम्प्यूटर जन-जन तक अपनी पहुँच बना चुका है इसलिए क्या पता नर्क यानी दोज़ख की भाषा भी यही हो, माध्यम भी यही हो। वो भी इतनी ही आधुनिक हो जाये। इसलिए मैं अपने अंतिम दिनों में यह जुबान सीख लेना चाहता हूँ। उन्होंने आगे कहा कि हिन्द-युग्म ने आज हिन्दी की इंटरनेटीय उपस्थिति बताकर मेरे सामने एक नई दुनिया खोल दी है। इस कार्यक्रम से पहले उन्हें ब्लॉगिंग के बारे में सुना तो था लेकिन यह दुनिया इतनी विशाल है, उन्हें इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था।
रचनाकारों की छपास पर व्यंग्य करते हुए यादव ने कहा कि चलो अच्छा है कि ब्लॉग के हिन्दी में आ जाने से हमारे जैसे संपादकों को कवियों के फोन-पत्र से परेशान नहीं होना पड़ेगा, जो कविताएँ भेजकर रोज-रोज यह पूछकर कान खाते रहते हैं कि हमारी रचना कब छपेगी। अब न छपने की हालत में अपने ब्लॉग पर खुद से छाप लेंगे।
राजेन्द्र यादव ने यह भी कहा कि हिन्दी प्रेमियों को विचारों से भी आधुनिक होना पड़ेगा। हमें खड़ी बोली से पहले के साहित्य को आल्मारियों में बंद कर देना चाहिए। वैचारिक और सामाजिक विकास की स्पर्धा के इस दौर में हमें बहुत आगे जाना है, अतः रास्ते का बोझ जितना हल्का हो उतना ही बढ़िया। उन्होंने एटामिक ऊर्जा की वक़ालत करने वाले ऐसे लोगों की भर्त्सना की जो माथे पर टीका लगाने और मंदिर के बाहर नारियल तोड़ने का पाखंड करते हैं।
राजेन्द्र यादव ने कहा कि वर्तमान की हिन्दी ज़ुबान जिसे ५० करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं या समझते हैं और जो विश्व की दूसरी बड़ी भाषा है, उसका साहित्य भी वहीं से माना जाना चाहिए जहाँ से हिन्दी भाषा का रूप खड़ी बोली हुई है। हिन्दी सिखाने के लिए कबीर-तुलसी के साहित्य की जगह आधुनिक साहित्य उपयोग में लाया जान चाहिए। राजेन्द्र जी ने महिलाओं और दलितों के हर क्षेत्र में आगे आने पर बल दिया।
इसके बाद सेट्रंल बैंक ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय सहायक महाप्रबंधक श्रीधर मिश्र को कार्यक्रम में दो शब्द कहने के लिए बुलाया गया। यह कार्यक्रम उन्हीं के सहयोग और मार्गदर्शन में अमली जामा पहन पाया था। श्रीधर मिश्र ने कहा कि वे राजेन्द्र यादव के विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते और वे पुराने चीजों को भी साथ ले चलने के पक्षधर हैं।
अंत में हिन्द-युग्म की सदस्या नीलम मिश्रा ने देश-विदेश से किसी भी माध्यम से हिन्द-युग्म से जुड़े हिन्दी-प्रेमियों का धन्यवाद किया।



इस कार्यक्रम में हरिभूमि अखबार के दिल्ली प्रमुख अरविन्द सिंह, MCD के अधिकारी सुरेश यादव, सेंद्रल बैंक ऑफ इंडिया के हिन्दी अधिकारी ईश्वर चन्द्र भारद्वाज, आकाशवाणी के मोबिन अहमद खाँ, भड़ास4मीडिया के रिपोर्टर अशोक कुमार, प्रसिद्ध ब्लॉगर मसिजीवी, चोखेरबाली ब्लॉग की मुख्य-मॉडरेटर सुजाता तेवतिया, ब्लॉगवाणी के मैथिली शरण गुप्त व सिरिल गुप्त, सफर-प्रमुख राकेश कुमार सिंह, छंदशास्त्री दरवेश भारती, ब्लॉगर राजीव तनेजा, नवभारत टाइम्स के यूसुफ किरयानी, पंडित प्रेम बरेलवी, लेडी श्रीराम कॉलेज में हिन्दी की प्रोसेफर डॉ॰ प्रीति प्रकाश प्रजापति, महकते-पल फोरम प्रमुख सखी सिंह, आनंदम-प्रमुख जगदीश रावतानी, युवा कवि भूपेन्द्र कुमार, साक्षात भसीन, नमिता राकेश, अमर-उजाला में सह-संपादक रामकृष्ण डोगरे, पंजाब केसरी में सह-संपादक सुनील डोगरा ज़ालिम, पत्रकार उमाशंकर शुक्ल, कार्टूनिस्ट मनु-बेतख्खल्लुस, वर्तमान यूनिकवि दीपक मिश्रा ने भी हिन्द-युग्म परिवार को अपना आशीर्वाद दिया।
कार्यक्रम में आगंतुकों के स्वागत के लिए हिन्द-युग्म की ओर से अभिषेक पाटनी, भूपेन्द्र राघव, रविन्दर टमकोरिया, नसीम अहमद, दीप जगदीप, प्रेमचंद सहजवाला इत्यादि उपस्थित थे।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

राजस्थानी भाषा साहित्य पुरस्कार 2008


लिखना है और टिकना है पर किसी भी कीमत पर नहीं बिकना है - ओंकार श्री, प्रसिद्ध राजस्थानी साहित्यकार
अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा अपने 21वें राष्ट्रीय अधिवेशन और 74वें स्थापना दिवस के अवसर पर तेरापंथ भवन अध्यात्म साधना केन्द्र, छत्तरपुर मेहरौली मार्ग, नई दिल्ली में कल सुबह यानी 20 दिसम्बर 2008 को दिन तीन बजे भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरोसिंह शेखावत के हाथों "राजस्थानी भाषा साहित्य पुरस्कार 2008" जनचेतना के विप्लवी यायावर रचना धर्मी श्री ओंकार श्री को से देने जा रही है।


श्री ओंकार श्री का परिचय:
जन्म: 26 मार्च 1933, बीकानेर। पिता श्री बालमुकुन्दजी, आपकी विमाता के साथ कराची नगर में हरमन मोहता कंपनी के व्यवस्थापक व प्रवासी राजस्थानी व्यवसायिक घरानों के विवादों के प्रख्यात आरबीट्रेटर थे।
आप डूँगर कॉलेज, बीकानेर से कला स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर, अर्थाभाववश आगे पढ़ न सके। तत्पश्चात् आपने लोकमत बीकानेर के सहायक संपादक बतौर मात्र 70 रुपया माहवारी मान देय पर कार्य किया।
सन् 1966 से 1986 तक उदयपुर में स्थित राजस्थान साहित्य अकादमी के सेवा काल में सहायक सचिव का निदेशक व उपनिदेशक पद पर प्रोन्नत हो सन् 82 से 86 तक शासन स्थापित राजस्थानी भासा साहित्य संस्कृति अकादमी बीकानेर के शासन द्वारा नियुक्त संस्थापक सचिव।
अकादमी सेवा मुक्ति के बाद आपने माणक (राज0मा0) का व.संपादक, जोधपुर के सांध्य दैनिक तीसरा प्रहर का व.संपादक दायित्व संभालने के बाद नवमें दशक में बीकानेर संभागीय विकास परिषद का व राजस्थान गो.सेवा संघ का मानद सचिव पद भार वहन किया।


पत्र पत्रकारिता के क्षेत्र में:
संपादन पूर्व व.संपादक: लोकमत(सा0)बीकानेर, माणक (राजस्थानी) जोधपुर, तीसरा प्रहर सांध्य (दै0) जोधपुर, प्रतिदिन
सांध्य(दै0)उदयपुर, पोलिटिक्स(दै0)उदयपुर, प्रगति(सा0)उदयपुर। प्रकाश(सा0)उदयपुर, ओसवाल ज्योति(व0)जयपुर, जैन दर्पण(मा0)जयपुर, अर्थभारती (मा0)पारिकबन्धु (मा0)जयपुर, श्रमणोपासक (बीकानेर), जागती जोत बीकानेर, मधुमती (मा0) उदयपुर, सहकार पथ (मा0) जयपुर, लूर (शोध जनरल) जोधपुर। एक्सीलैंस (अंग्रेजी शिक्षा मा0) भोपाल। निर्मला (मा0) बैंगलोर।
प्रवर्तन: हिन्दी प्रत्रकारिता में निजात्मीय नगर-जन संवाद षैली स्तम्भ का ‘हैलो’ बीकानेर, लगभग 2000 लेखा लेख/कवितायें/ विविध विधाओं में 50 पत्रों में प्रकाशित।
ग्रंथ संपादनः विशाल ग्रंथो का यथा: राजस्थान संगीत: संगीतकार-जयपुर, तत्त्ववेत्ता अभिनन्दन ग्रंथ-जयुपर, आखरबेल, प्रणाम स्मृति ग्रंथ (दिल्ली), वंदन स्मृति ग्रंथ, उदयपुर, ऋषया यतन पुरा गंथ-उदयपुर, सर्व मंगल सर्वदा (बी.के.बिड़ला प्रोजेक्ट) कोलकाता।
प्रकाशित ग्रंथः एक पंख आकाश (हिन्दी मिनि कविता प्रवर्तन कृति-1971 उदयपुर, (2) समाज दर्शन (जैनाचार्य जवाहरलालजी महाराज) बीकानेर, विप्लवी संगीतकार (डॉ.जयचन्द्र षर्मा) बीकानेर, व्यासाय नमोनम्: (रम्मतकार पं. बच्छराज व्यास) बीकानेर, सहकारिता से ग्रामस्वराज्य, सहकारिता से लोकतंत्र, सहकारिता से पंचायत राज, जय सहयोग (हिन्दी गीत), मैं उपस्थित हूँ (हिन्दी काव्य)- प्रकाशनोन्मुख, श्री समुच्चय (समग्र संकलन-वर्गीकरण कार्य जारी)।
राजस्थानी जनकवि अवधारणा-राजस्थानी, मोरपंख (राज.गीत), राजस्थानी पत्रकारिता के उजले आयाम (प्रकाशनाधीन), आखरबेल (राज.काव्य संकलन), लिखी सो सही (आत्म कथा-सृजनाधीन), रंगरेख (राज.रेखाचित्र)-प्रकाशनोन्मुख।
सम्मान: डी. लिट (राज.) आर.डी.एफ. जालोर से, जीनियस एवार्ड (विश्व जौहर न्यूज ऐसो0) उदयपुर (पत्रकारिता चैतन्यपूर्ण लेखन हेतु), महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ (राज. काव्य) सम्मान, राजस्थानी भाषा (शीर्ष प्रदेश स्तरीय) सम्मान जयपुर (राज्यपाल द्वारा), आ0 शिलीमुख हिन्दी सृजन- स्मृति एवार्ड (प्रथम) जयपुर, समताशेखर (जैन यूथ) जयपुर, प्रबोधक (सिद्धान्त शाखा) बीकानेर, सहकार गुरू (राज. शासन) सम्मान जयपुर, साहित्य श्री (जय साहित्य संसद) जयपुर, विशिष्ट साहित्यकार (रा.भा.सा.सं.अकादमी) सम्मान-बीकानेर, जन प्रचेता (बीकानेर संवाद मंच) सम्बोधन-बीकानेर।[end]

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

बदबू को लोग नाक बन्द कर के लोग सुंघते हैं-

कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7


आज हम कुछ नये विषय पर जाने का प्रयास करेगें। क्या आपके मन में कभी कोई ऐसी बात नहीं उठती की लोग आपको भी जाने-पहचाने या आपकी ख्याति सर्वत्र फैले। हम कई बार किसी मंच पर पुरस्कार भी लेने जाते हैं या किसी व्यक्ति ने हमें अपमानित भी किया होगा। इस दोनों प्रक्रिया के घटते वक्त हमारे मस्तिष्क पर जो संकेत उभरते हैं। इसका विश्लेषण करने का प्रयास करेगें कि किस प्रकार ये बातें हमारे जीवन में हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।


हम क्या चाहते हैं:


  • कोई आये और हमें अपमानित करके चला जाये।
  • कोई आये सिर्फ अपनी बात करे और चला जाये।
  • मंच पर खुद को स्थापित करें और मन में खुश हो जायें।
  • मंच पर दूसरे को स्थापित देख कर मन में खुद को भी स्थापित होने की तमन्ना जगे।
  • हम कहीं जायें तो सामने वाले पक्ष को अपने से नीचा समझने का प्रयास करें।
  • हम कहीं जायें तो उस स्थान पर कुछ गंदगी करके मन में संतोष प्राप्त करें।
  • हम यह तो माने की मेरी खुद की कृर्ति चारों तरफ फैले पर किसी दूसरे पक्ष की कृर्ति फ़ैलती हो तो मन ही मन हीन भावना को जन्म देना शुरू कर दें।

इसमें से कौन सी बात हमें अच्छी नहीं लगती। बस यह मान लें कि जो बात हमें अच्छी नहीं लगती वह किसी दूसरे को भी अच्छी नहीं लगती होगी और जो बातें हमें अच्छी लगती है वही बातें दूसरे को भी अच्छी लगती है। जिस दिन से आप इस प्रक्रिया को अपनाना शुरू कर देते हैं उसी वक्त से चारों दिशाओं में आपका यश फैलने लगगा, जिसप्रकार:
"बदबू को लोग नाक बन्द कर के लोग सुंघते हैं और खुशबू को नाक खोलाकर। देखना हमको है कि हमारे व्यवहार से किस प्रकार की खुशबू निकलती है।"


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-8 जारी.....


पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें


- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

लघुकथा: नहीं.......... -शम्भु चौधरी

नरेश को आज न जाने क्या हो गया, सुबह से ही कुछ परेशान सा दिख रहा था। कल रात की कलह को लेकर मस्तिष्क में तूफान सा मचा हुआ। छोटी-मोटी बातें तो रोज ही होती रहती थी। आज ऐसी क्या बात थी जो नरेश को सोचने के लिये मजबूर कर रही थी।
नरेश की शादी हुये चार साल हो गये थे, राधा तीन माह के बाद मायके से लौटी थी। नरेश के दो बच्चे थे। सोनू तीन साल का हो गया था। छोटी लड़की अभी गोद में ही थी। तीन माह ही तो हुये थे उसको, राधा का पहला जापा (प्रसूति) घर में ही हुआ था। इस बार राधा चाहती थी कि उसका दूसरा बच्चा पीहर में ही हो, जहाँ घर के पास ही एक अस्पताल है, जहाँ आसानी से अपने होने वाले बच्चे को जन्म भी दे सकेगी। बस इतनी सी ही बात थी जो आज के कलह का मूल कारण था।
माँ को यह बात नागवार गुजरी। जैसे ही राधा ने घर में कदम क्या रखा, माँ ने तो मानो स्वांग ही भर लिया हो।
"माँगने से भीख भी नहीं मिलती। बड़ा आया है - भीख माँग लूँगा - भीख माँग लूँगा!..पढ़ा-लिखा के इसलिए तुझे बड़ा किया था?..काम-धाम तो रहा नहीं।..दो-दो बच्चे पैदा कर लिये। पाल नहीं सकते तो किसने कहा था बच्चे पैदा करने के लिये? न घर की इज्जत, ना गाँव का ख्याल, मान- मर्यादा को ताक पर रख दिया। थोड़ा तो अपने खानदान की इज्जत रख ली होती। बस बहू क्या आ गयी, ससुराल का हो गया। मैं तो जलती लकड़ी हूँ! कब बुझ जाऊँगी, पता नहीं!..." राधा के घर में प्रवेश करते ही मानो, तीन महीने का गुस्सा फूट पड़ा हो।
कल तो माँ ने तूफान ही मचा दिया था। नरेश को लगा कि अब इस घर में और बर्दास्त नहीं हो सकेगा। बहुत हो गया.... यह सब। बस काम मिलते ही घर छोड़कर चला जायेगा। राधा ने भी कसम ही खा ली थी कि अब या तो तुम साथ चलो या…वह इस घर में एकदम नहीं रह सकती। बहुत दिन हो गये सुनते-सुनते।
रात भर राधा रो-रोकर कभी मुझे, तो कभी माँ को कोसती रही। बहुत समझाने का प्रयास किया। परन्तु राधा ने तय कर लिया था कि कल फैसला कर ही लेना है। किसी भी तरह से समझौते की संभावना नज़र नहीं आ रही थी। इस द्वंद्व ने मुझे पशोपेश में डाल दिया था। एकतरफ घर में माँ अकेली कैसे रहेगी? तो दूसरी तरफ राधा अब घर में किसी भी हालात में रहने को तैयार नहीं थी।
यह सब सोचते-सोचते घर से बाहर निकल.....पास ही स्टेशन की तरफ चल पड़ा। घर के पास से ही रेललाइन का रास्ता स्टेशन की तरफ जाता था। जल्द स्टेशन पहुंचने के लिये आमतौर पर गांव के लोग यही मार्ग चुनते थे। पता नहीं आज नरेश को क्या जल्दी थी, वह भी रेल की पटरियों के बीच चलने लगा। दिमाग पूरी तरह से खोखला हो चुका था।
काम की तलाश...., घर की इज्जत....., माँ की देखभाल..., बच्चे का ख्याल...., राधा की बात...., माँ के ताने..., गाँव की मर्यादा....,सब एक साथ अपना हक माँगने के लिये खड़े थे। एक की बात सुनूँ तो दूसरे का अपमान, किसकी मानूँ, धीरे-धीरे रेल की पटरियों से आती आवाज ने रफ़्तार ले ली थी, पटरियों से आती आवाज ने नरेश को संकेत दे दिया था कि अब कुछ ही पलों में इन पटरियों के ऊपर से ट्रेन गुजरने वाली है। नरेश को यह भी पता था कि जल्द ही उसे इन पटरियों से नीचे दूर हटना ही होगा।
नरेश चाहता भी नहीं था कि उसे कमजोर होकर लड़ना है। आत्महत्या का जरा भी विचार मन में नहीं था। वह यह भी जानता था कि यह कार्य कमजोर मानसिकता का जन्म है, या फिर मानसिक अस्वस्थता के लक्षण। वह जीवन से हताश नहीं था, परेशान जरूर हो चुका था, लेकिन इतना भी नहीं जो उसे मौत के इतने करीब ला खड़ा कर दे।
ट्रेन की आवाज़ काफी नज़दीक आ चुकी थी, नरेश बस अब हटने की सोच ही चुका था। एक तेज आवाज बस कान को सुनाई दी। नहीं..................ट्रेन की पटरियों पर लोगों की हुजूम लग गया था। ट्रेन रूक चुकी थी। भीड़ में से एक नरेश को पहचानते हुये....चिल्ला पड़ा .... अरे................. ये तो नरेश है।
*****
पाठकों की टिप्पणियाँ साहित्य शिल्पी पर
December 8, 2008 1:14 PM
Nice Psycological analysis of mindstate. - Alok Kataria
क्या कहूं .....
ऐसी कहनी क्यों लिख दी जाती है बस यही सवाल उठता है मन में पढने के बाद ...
पढ कर रेल की पटरी पर जाने को मन होता है... जो कहानी समाधान नहीं देती वहा अंधेरा बिखेरती है... लघु करने के चक्कर मे कहानी का क्थ्य कहानी में आया ही नहीं.... - yogesh samdarshi
अंतर्व्यथा की परिणति को दर्शाती कहानी अच्छी लगी। - रचना सागर
कश्मकश..... - पंकज सक्सेना
कहानी अधूरी लगती है। पाठक कुछ और तलाशता रह जाता है। वैसे इसे अच्छी लघुकथा कहूँगी। - रितु रंजन
अच्छी कहानी है। बधाई। - अभिषेक सागर
कहानी की भाषा-शैली और विष्य पसन्द आया लेकिन अंत अखरता है।मेरे ख्याल से कहानी में समाधान होना ज़रूरी है। -राजीव तनेजा
शम्भू जी बहुत सुंदर कहानी लिखी है मानव भावनाओं को बखूबी लिखा है - रचना

"अर्श": बहोत ही बढ़िया लघु कथा बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको.......

http://www.sahityashilpi.com/

रविवार, 7 दिसंबर 2008

व्यक्तित्व विकास-६: क्रोध का प्रयोग दिमाग से करें।


जिस तरह हमने ऊपर देखा की क्रोध को एक अन्य गुलदस्ते में डाल दिया गया, ठीक इसी तरह हमारे जीवन में भी कई बातें गुजरती है। ऎसा नहीं कि क्रोध का हमारे जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं हो, पर क्रोध की भाषा को हमने कभी स्वीकार नहीं किया। आज हम इस दो पहलुओं को अलग-अलग तरीके से देखने का प्रयास करेंगें।
पहला: ऊपर के चार गुलदस्ते की तरह हम अपने जीवन के पक्ष को देखेंगें।
दूसरा: क्रोध जीवन का जरूरी हिस्सा कैसे बन सकता है।


आम जीवन में जब हम किसी व्यक्ति के विचार से सहमत नहीं रहते तो उस व्यक्ति को या तो हम अलग कर देते हैं या खुद को उस समुह से अलग कर लेते हैं यही मानसिकता के लोग संस्था में भी कुछ इसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। कुछ हद तक यह वर्ताव उनके खुद के लिये तो सही माना जा सकता है पर संस्था के लिये इस तरह का व्यवहार किसी भी रूप में सही नहीं हो सकता। इसी बात की विवेचना आज हम यहाँ पर करते हैं।


यहाँ क्रोध के स्वरूप को ही हम एक व्यक्ति मान लेते हैं।
हमने देखा कि क्रोधरूपी व्यक्ति न तो मस्तिष्क भाग में, न ही भोजन भाग में और न ही श्रम के भाग में समा पाया। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उसे जीवन से हम अलग कर दें। मैंने यह भी लिखा कि क्रोध का एक पक्ष जो हम देखते हैं सिर्फ वही नहीं होता, क्रोध कई बार हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर अपनी उत्तरदायित्वों को काफी सावधानी से निभाना भी जानता है। बस थोड़ा सा हमें इसके प्रयोग में सावधानी रखनी पड़ती है।
मसलन क्रोध का प्रयोग दिमाग से करें।
जैसे किसी बच्चे पर जब माँ क्रोधित होती है तो उसमें स्नेह-ममता की झलक भी झलकती है। जब हम किसी क्रमचारी के ऊपर क्रोध करते हैं तो उसमें हमारे कार्य को पूरा करने का लक्ष्य छिपा रहता है। ठीक इसी प्रकार जब हम किसी युवा बच्चों पर वेवजह क्रोधित होने लगते हैं तो उसमें उसके भविष्य कि चिन्ता हमें सताती रहती है। परन्तु इन क्रोध से हमारे ऊपर के तीनों गुलदस्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होते। कहने का सीधा सा अर्थ यह है कि जहर जीवन का रक्षक बन सकता है जरूरत है हमें उसके उपयोग करने की विधि का ज्ञान हो।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7 जारी.....

- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-5


श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति इन पाँचों को भी एक गुलदस्ते में सजा लेते हैं इसके बाद हमारे पास एक शक्ति और बच जाती है जो कि क्रोध करने की शक्ति है। हम इस शक्ति को किसी भी गुलदस्ते में सजाने में अपने आपको असफल पाते हैं। आप इस शक्ति को किस गुलदस्ते के लिये उपयुक्त मानते हैं ?
अबतक हमने तीन गुलदस्ते सजाये इन तीनों गुलदस्ते को नाम दे दें ताकी आगे बात करने में आसानी रहेगी।
पहला गुलदस्ता: मस्तिष्क भाग
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति

दूसरा गुलदस्ता: तृप्ति भाग
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति

तीसरा गुलदस्ता: श्रम भाग
श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति

चौथा गुलदस्ता: अन्य भाग
क्रोध करने की शक्ति को एक बार इसी गुलदस्ते में सजा देते हैं।


अब हमें यह करना है कि ऊपर से किसी एक या दो क्रिया को इस चौथे गुलदस्ते में सजाना है या फिर इस गुलदस्ते के फूल को किसी और गुलदस्ते में ले जाने का प्रयास करते है। पर ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया को करते वक्त जब आप श्रम भाग में क्रोध को ले जायें तो आपके दूसरे विभाग अर्थात- मस्तिष्क और तृप्ति भाग को कोई क्षति नहीं होनी चाहिये।
कहने का अर्थ है कि आप जब श्रम करते वक्त क्रोध को साथ ले लेते हैं तो आपके सोचने,देखने, खाने की प्रकिया में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिये।
चलिये आज से आप और हम इस प्रयोग को करके देखतें हैं कि क्रोध की शक्ति को किस हिस्से में रखा जाना ठीक रहेगा।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-6 जारी.....

- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

वतन बेचते नेता लोग

पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग

मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग

दावूद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं

खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं

कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा

माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा

सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना

वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना

गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?

बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?

कुंवर प्रीतम

करो खिदमत धक्कों से

आतंकी को नही मिलेगी जमीं दफ़न होने को

अपना तो ये हाल कि बंधू अश्क नही रोने को

आंसू सारे बह निकले है, नयन गए हैं सूख

२६ से बेचैन पडा हूँ, लगी नही है भूख

लगी नही है भूख, तन्हा टीवी देख रहे हैं

उन ने फेंके बम-बारूद, ये अपनी सेंक रहे हैं

सुनो कुंवर की बात खरी, ये मंत्री लगते छक्कों से

जाने वाले नही भाइयों, करो खिदमत धक्कों से

कुंवर प्रीतम

ऎसी क्या मजबूरी है?

वाह सोनिया, वाह मनमोहन जी, खूब चल रहा खेल
घटा तेल के दाम रहे जब, निकल गया सब तेल
निकल गया सब तेल कि भईया टूटी कमर महंगाई में
आटा तेल की खातिर घर-घर पंगा लोग-लुगाई में।
देश पूछता आखिर बंधू, ऎसी क्या मजबूरी है?
पी एम् हो तुम देश के, या सोनिया देती मजदूरी है
कुंवर प्रीतम

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-4


हम जब किसी आईनें के सामने खड़े होते हैं तो उस वक्त क्या सोचते और देखते हैं। निश्चय ही आप आपने चहरे को निहारते और अपनी सौंदर्यता की बात को सोचते होंगें। क्या उस वक्त आप रोटी खाने की बात को नहीं सोच सकते? या फिर किसी व्यापार की बात। पर ऐसा नहीं होता, लेकिन जैसे ही हम भगवान की अर्चना करते हैं उस वक्त सारे झल-कपट ध्यान में आने लगते हैं। भगवान से अपने पापों की मुक्ति का आश्वासन लेने में लग जाते हैं। गंगा में स्नान करते वक्त भी हमारे संस्कार किये पापों से हमें मुक्त करा देता है। जब यह सब संभव हो सकता है तो हमारे सोच में थोड़ा परिवर्तन ला दिया जाय तो हम अपने व्यक्तित्व को भी बदल सकते हैं। पर इसके लिये हीरे-मोती की माला पहनने से नहीं हो सकता, इसके लिए आपको हीरे-मोती जैसे शब्दों के अमूल्य भंडार को पढ़ने की आदत डालनी होगी। कई बार सत्संग के प्रभाव हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर जाती है। हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिलता इसलिये सुनकर मस्तिष्क का विकास हम करते हैं। वास्तव में यही मूलभूत बातें होती हैं जो हमें अपने जीवन को सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
एक बार एक नास्तिक व्यक्ति से मेरी मुलाकत हुई, उसने कहा कि वह किसी भी ईश्वरिय शक्ति में विश्वास नहीं करता। मैंने भी उसकी बात पर अपनी सहमती जताते हुए उससे पुछा कि आप अपनी माँ को तो मान करते ही होंगे। उन्होंने जबाब में कहा अरे साहब! ये भी कोई पुछने की बात है। जिस माँ ने मुझे नो महिने पेट में रख कर अपने खून से मेरा भरण-पोषण किया, फिर आपने दूध से मुझे पाला उसे कैसे भूला जा सकता है। उसने बड़े गर्व से यह भी बताया कि वे रोजना माँ की पूजा करते और उनसे आशीर्वाद भी लेते हैं। तब मैंने बात को थोड़ा और आगे बढ़या उनसे पुछा कि जो माँ आपको नो माह अपने गर्व में रखती है उसके प्रति सम्मान होना गलत तो नहीं है।
उनका जबाब था - बिलकुल भी नहीं। बल्की जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वो समाज में रहने योग्य नहीं है।
इस नास्तिक विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति के मन में माँ के प्रति श्रद्धा देखकर मेरे मन में भी एक आशा के दीप जल उठा, सोचा क्यों न आज इस नास्तिक विचार को बदल डालूँ।

मेरे मन में सवाल यह था कि इसे कहना क्या होगा जिससे इसके नास्तिक विचारों को बदला जा सके। वह भी एक ही पल में।
क्या आपके पास कोई सूझाव है जिसे सुनने से इस नास्तिक व्यक्ति के विचार को एक ही पल में बदला जा सके। कहने का अर्थ है कि वो आपकी बात को सुनकर ईश्वर में विश्वास करने लगे।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-5 जारी......

- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

कवि एवं हिन्दीसेवी राजीव सारस्वत पंचतत्व में विलीन

देवमणि पाण्डेय, मुम्बई


सोमवार 1 दिसम्बर को अपने परिजनों को रोता बिलखता छोड़कर कवि एवं हिन्दीसेवी राजीव सारस्वत पंचतत्व में विलीन हो गए। मुम्बई में पांचसितारा होटल ताज पर हुए आतंकी हमले ने इस मुस्कराती ज़िन्दगी को मौत में तबदील कर दिया। वे इस होटल में अपने अधिकारियों के साथ राजभाषा कार्यान्वयन से जुड़ी संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए आए हुए थे। मुरादाबाद (उ.प्र.) के मूल निवासी 50 वर्षीय राजीव सारस्वत हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरशन लि. (HPCL) में प्रबंधक (राजभाषा) के पद पर कार्यरत थे। हँसमुख और मिलनसार स्वभाव वाले राजीव सारस्वत का व्यक्तित्व अभिनेताओं जैसा था। कवि और लेखक होने के साथ ही प्रश्नमंच और क्विज जैसे कार्यक्रमों के संचालन में उन्हें महारत हासिल थी।


पहली दिसम्बर की शाम को 'राजीव सारस्वत अमर रहे' नारे के साथ जब उनके आवास मिलेनियम टावर, सानपाड़ा, नई मुम्बई से उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई त्तो मित्रों,परिचितों,पड़ोसियों,सहकर्मियों, और सहित्यकारों को मिलाकर हज़ार से भी अधिक लोगों ने उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी। रचनाकार जगत से जो लोग वहां मुझे नज़र आए उनमें उनमें शामिल थे- डॉ.विजय कुमार, डॉ.सरोजिनी जैन, विभा रानी, अक्षय जैन, पूर्ण मनराल, बसंत आर्य, अरविंद राही, अनंत श्रीमाली, राजेश्वर उनियाल, वागीश सारस्वत, अशोक तिवारी, सतीश शुक्ला, जाफ़र रज़ा, लोचन सक्सेना, राजेन्द्र गुप्ता, एम.एल.गुप्ता, रविदत्त गौड़, उमाकांत वाजपेयी, सुरेश जैन, अशोक बाफना, गुजराती कवि चेतन फ्रेमवाला और अभिनेता-कवि विष्णु शर्मा। कॉलेज जाने वाली दो बेटियों के पिता राजीव सारस्वत का अंतिम संस्कार यू.के. से आए उनके बड़े भाई नरेश सारस्वत ने किया।


मुस्कराती ज़िन्दगी की दर्दनाक मौत


यह मुस्कराती ज़िन्दगी जिस तरह मौत में तबदील हुई उसे देखकर ये लाइनें बार-बार याद आतीं हैं-

हमेशा के लिए दुनिया में कोई भी नहीं आता
पर जैसे तुम गए हो इस तरह कोई नहीं जाता

मित्रों और सहकर्मियों से टुकड़े टुकडे में जो जानकारी हासिल हुई उसे सुनकर दिल दहल जाता है। अभी तक फ़िज़ाओं में कुछ ऐसे सवाल तैर रहे हैं जिनके जवाब नहीं मिल पाए हैं। अभी तक इस सचाई का पता नहीं चल सका है कि राजीव सारस्वत आतंकवादियों का शिकार हुए या एनएसजी कमांडों की गलतफ़हमी के कारण मारे गए। कुछ सिरे जोड़कर यह दर्दनाक कहानी इस तरह बनती है। बुधवार 26 दिसम्बर को वे होटल ताज में संसदीय समिति के दौरे के कारण रूम नं.471 में कार्यालयीन ड्यूटी पर तैनात थे। इस कमरे को कंट्रोल रूम (सूचना केन्द्र) का रूप दिया गया गया था। यानी बैठक से संबंधित सभी फाइलों और काग़ज़ात को यहां रखा गया था। राजीव सारस्वत के साथ उनके तीन और सहकर्मी भी यहां मौजूद थे। रात में दो सहकर्मी सांसदों के साथ रात्रिभोज के लिए तल मंज़िल पर डाइनिंग हाल में गए। आधे घंटे बाद तीसरे सहकर्मी ने कहा कि मैं नीचे देखकर आता हूं कि इन लोगों के लौटने में देर क्यों हो रही है। अब राजीव सारस्वत कमरे में अकेले थे। ठीक इसी समय आतंकवादियों ने धावा बोल दिया। सहकर्मियों ने तत्काल फोन करके उन्हें हमले की जानकारी दी और सावधानी बरतने की सलाह दी। आतंकवादी गोलीबारी करते हुए सीधे ऊपर चढ़ गए। इसका फ़ायदा उठाकर ताज के स्टाफ ने डाइनिंग हाल के लोगों को पिछले दरवाज़े से सुरक्षित बाहर निकाल दिया। पहले सेना ने और कुछ घंटे बाद एनएसजी ने ताज को पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लिया। राजीव सारस्वत अपने मोबाइल के ज़रिए लगातार अपने परिवार और मित्रों के सम्पर्क में थे। लग रहा था कि थोड़ी देर में यह खेल समाप्त हो जाएगा मगर ऐसा नहीं हुआ और रात गुज़र गई।


राजीव सारस्वत के सहकर्मियों ने पुलिस से अनुरोध किया कि कमरा नं.471 में एचपीसीएल का कंट्रोल रूम है। उसमें राजीव सारस्वत फंसे हुए हैं। कृपया यह जानकारी एनएसजी तक पहुंचाएं। पुलिस ने बताया कि ताज पर अब सारा नियंत्रण एनएसजी का है और उनसे सम्पर्क करने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। एक मित्र ने बताया कि एचपीसीएल के अधिकारियों ने दिल्ली तक फोन किया मगर राजीव सारस्वत की मदत में कामयाब नहीं हो पाए। गुरुवार 27 नवम्बर को अपराहन 3.45 बजे राजीव सारस्वत के कमरा नं.471 पर दस्तक हुई। राजीव ने समझा कि बचाव दल आ गया है। फिर भी उन्होंने अंदर की जंज़ीर लगाकर बाहर झांकने की कोशिश की। बाहर खड़े आतंकवादी ने गोली चला दी जो उनके हाथ में लगी। उन्होंने फौरन दरवाज़ा बंद करके अपने एक सहकर्मी को फोन किया। सहकर्मी ने उन्हें सलाह दी कि आगे कोई कितना भी खटखटाए मगर दरवाज़ा नहीं खोलना। राजीव ने तत्काल पत्नी को फोन किया कि हाथ में गोली लग गई है। दर्द बहुत है मगर किसी तरह बरदाश्त कर लेंगे।


शाम 5.30 बजे मित्र अरविंद राही ने फोन पर मुझे बताया कि राजीव से सम्पर्क टूट गया है और घर वाले बहुत परेशान हैं। हमने अस्पताल से लेकर अख़बारों तक में फोन किया मगर कोई सुराग नहीं मिला। ऐसी चर्चा है कि पहले मास्टर की से कमरा नं. 471 को खोलने की कोशिश की गई मगर नहीं खुला क्योंकि यह भीतर से बंद था। आशंका यह जताई जा रही कि जब एनएसजी के कई बार खटखटाने के बावजूद राजीव सारस्वत ने दरवाज़ा नहीं खोला तो उन्हें लगा कि इसमें ज़रूर कोई आतंकवादी छुपा हुआ है। हो सकता है कि हाथ से रक्तस्राव और दर्द के कारण राजीव सारस्वत बेहोशी की हालत में पहुंच गए हों या डर के कारण उन्होंने दरवाज़ा न खोला हो। बहरहाल बताया जा रहा है कि एनएसजी ने विस्फोटक से दरवाज़े को उड़ा दिया और पल भर में सब कुछ जलकर राख हो गया। राजीव सारस्वत का भरा पूरा 100 किग्रा का शरीर सिमटकर 25 किग्रा का हो गया। पहले तो परिवारवालों ने इस शरीर को पहचानने से इंकार कर दिया क्योंकि पहचान का कोई चिन्ह ही नहीं बचा था। मगर बाद में स्वीकार किया क्योंकि उस कमरे में राजीव सारस्वत के अलावा कोई दूसरा था भी नहीं।


मुम्बई में घटी इस त्रासदी को कवर करने वाले हिन्दी समाचार चैनलों ने हमेशा की तरह ग़ैरजिम्मेदारी
का परिचय दिया। उनके संवाददाता ऐसे चीख़ चीख़ कर बोल रहे थे जैसे ज़ुर्म या अपराध की रिपोर्टिंग करते हैं। एक चैनल ने जोश की सीमाएं लांघकर बताना शुरू कर दिया कि रूम नं.471 को आतंकवादियों ने अपना कंट्रोलरूम बना लिया है। जब उन्हें फोन करके अधिकारियों ने सूचित किया कि यह तो एचपीसीएल का कंट्रोलरूम है और उसमें राजीव सारस्वत हैं तो उन्होंने अपना यह समाचार तो हटा लिया मगर दर्शकों को सच नहीं बताया।


फिलहाल राजीव सारस्वत के आकस्मिक निधन से बहुत लोंगों ने बहुत कुछ खोया है जिसकी क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं है। ईश्वर उनके परिवार को शक्ति दे कि वे इस गहरे दुःख को सहन कर सकें। एक जागरूक कवि होने के नाते राजीव प्राय: सामयिक विषयों पर लिखते रहते थे। 10 अक्तूबर को श्रुतिसंवाद कला अकादमी के कवि सम्मेलन में उन्होंने एक कविता सुनाई थी । उसकी अनुगूंज अभी भी मुझे सुनाई पड़ रही है-


नए दौर को अब नया व्याकरण दें
विच्छेद को संधि का आचरण दें

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

अंततः पश्चिम बंगाल विधान सभा में महाकवि कन्हैयालाल सेठिया को श्रद्धांजलि दी गई

प्रकाश चंडालिया

पश्चिम बंगाल विधान सभा में अंततः हिन्दी और राजस्थानी के लब्ध प्रतिष्ठित कवि कन्हैयालाल सेठिया को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह राजस्थानी मूल के एक मात्र विधायक दिनेश बजाज के प्रयास से मुमकिन हुआ. आपको याद होगा इसी ब्लॉग पर विधानसभा भूल गई सेठिया जी को श्रद्धांजलि देना-शीर्षक से २३ नवम्बर को अत्यन्त कड़े प्रतिवाद के साथ इस विषय पर लिखा गया था। पिछले २३ नवम्बर को पश्चिम बंगाल विधान सभा में हिन्दी और बंगला जगत की कुछ नामचीन हस्तियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. कला, साहित्य और संस्कृति से जुड़े, ये वो लोग थे, जिनका हाल में निधन हुआ था. वैसे जिन लोगों को विधान सभा में २३ नवम्बर को श्रद्धांजलि दी गई, उनमे दो एक नाम ऐसे भी थे, जिन्हें सिर्फ़ वामपंथियों का परिचित होने के लिए शामिल कर लिया गया था. पर दुःख इस बात का था की भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से विभूषित कन्हैयालाल सेठिया का नाम इसमे शामिल नही था. सेठिया जी का जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ में हुआ था, लेकिन पिछले लंबे अरसे से वे कोलकता में ही रहते थे और देश की तमाम बड़ी हस्तियां उनसे मुलाकात करने उनके निवास पर ही आती थी। विधान सभा ने २३ नवम्बर को उन्हें इसलिए श्रद्धांजलि न दी होगी क्यूंकि सेठिया जी की काव्यमयी विचारधारा इन सत्ताधारी वामपंथियों के विचारों से मेल नही खाती थी. बहरहाल, युवा विधायक दिनेश बजाज ने इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाई और इसका नतीजा यह हुआ की मंगलवार २ डिसेम्बर २००८ को पश्चिम बंगाल विधान सभा में सेठिया जी का परिचय पढ़ा गया, फ़िर सभी विधायकों ने २ मिनट का मौन धारण कर उन्हें याद किया. देर आयद, दुरुस्त आयद...